मैं उम्मीद नहीं करता : सौमित्र राय

दैनिक समाचार

मैं अपने देश के प्रधानमंत्री से अर्थव्यवस्था, रोज़गार, नौकरी, ग़रीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे किसी भी मुद्दे पर जवाब की उम्मीद नहीं करता।

क्योंकि, हमारे प्रधानतोमंत्री में जवाब देने की उतनी ही योग्यता है, जितनी बीजेपी IT सेल के 2 रुपये वाले ट्रोल की।

भारत के प्रधानमंत्री की योग्यता झूठ बोलने, ऊंची फेंकने, अश्लील फब्तियां कसने, धमकी देने, मुद्दों से भटकाने… जैसी बहुत सी हैं, जो मेरे लिए किसी काम की नहीं।

फिर देश की 140 करोड़ जनता ऐसे व्यक्ति को 2024 तक भी क्यों झेले, जिसके पास इस देश को आगे ले जाने का कोई रोडमैप ही नहीं?

आज लोकसभा में यही प्रधानमंत्री राष्ट्रपति के अभिभाषण पर 170 संशोधनों को रद्दी में फ़ेंककर सियासी रोटी सेंक रहे हैं।

इन सबके बावजूद कि देश आज अफ़ग़ानिस्तान बनने की कगार पर खड़ा है, जहां महिलाएं अपने भूखे बच्चों के लिए रोटी मांगने सड़कों पर हैं।

भारत के पीएम जब लोकसभा में भाषण दे रहे हैं, उन्हें पिछले साल आये सिडबी के सर्वे को याद रखना चाहिए, जिसमें कहा गया है कि देश के 67% MSME बंद हो चुके हैं।

देश को रोज़गार देने वाले MSME को ठप करने का पाप प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी करवाकर किया है। गांधी, स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की बात उनकी ज़ुबां पर अब चुभती है।

आज भारत की अर्थव्यवस्था इस मुकाम पर खड़ी है कि उसे प्री-कोविड यानी 2019-20 के स्तर तक वापस पहुंचने के लिए अगले 5 साल तक 7.5% की ग्रोथ पकड़नी होगी।

लेकिन मोदी के आज के जवाब ने बता दिया है कि उनके पास 2026 तक के कुछ सवालों का ही जवाब नहीं है।

और न ही उनके टुकड़ों पर बिककर चल रहे नोयडा चैनल और भांड अखबारों के पास-

  1. 2026 के जीडीपी में कृषि का हिस्सा कितना होगा?
  2. वित्तीय घाटा कितना और जीडीपी में टैक्स का अनुपात कितना होगा?
  3. सरकार कितना सार्वजनिक खर्च कर पायेगी?

मैं चुनौती देता हूं, इस देश के तमाम मंत्री-संतरी, सरकारी बाबू और कथित अर्थशास्त्री और भांड पत्रकारों को। जवाब देकर दिखाएं।

वित्त मंत्री के पास भी इसका जवाब नहीं होगा, क्योंकि उनके 4 बजट जुगाड़ से बने हैं। कोई विजन नहीं। कोई दूरदृष्टि नहीं। सिर्फ़ लफ़्फ़ाज़ी।

कांग्रेस की मनमोहन सरकार को कोसने से बेहतर है कि मोदी अपनी ही सरकार को ऑटो पायलट मोड से बाहर निकालें।

याद रखें कि उसी UPA सरकार ने जीडीपी में टैक्स का अनुपात 8% तय किया था, जिसे मोदी सरकार ने घटा दिया। अर्थशास्त्र के फ़र्ज़ी चापलूस पंडितों को पता होना चाहिए कि आज भी GST की बढ़ोतरी में सबसे बड़ा हिस्सा आयात से आ रहा है।

फिर भी हमारा पीएम गांधी और स्वदेशी की बात करता है। इससे बड़ा पाखंड हो ही नहीं सकता।

शेयर मार्केट आज भी ध्वस्त हुआ है। कोविड में ये उछाल पर था। गोबर अर्थशास्त्री इसे अच्छे दिन बता रहे थे।

क्या शेयर बाजार की उछाल के साथ कॉर्पोरेट और इनकम टैक्स में इज़ाफ़ा हुआ? नहीं। सारी कमाई कालेधन के रूप में बीजेपी को सबसे अमीर बना गई।

जो वित्त मंत्री यह भी नहीं जानती कि जीडीपी के मुकाबले सरकार के सकल बजट का आकार 1.5% से भी कम है, उन्हें प्रगतिशील जैसे शब्दों के उपयोग से पहले 100 बार सोचना चाहिए।

जब जेब में फूटी कौड़ी न हो तो देश की उन्हीं संपत्तियों को बेचकर बीते साल ही मोदी ने 1 लाख करोड़ जुटाए। क्या प्रधानमंत्री को कांग्रेस से 70 साल का हिसाब मांगते आईना देखने की नहीं सूझती? बांकेलाल बने फिरते हैं।

मोदी आज जिस वैश्विक परिवर्तन और भारत की भूमिका का दंभ कर रहे थे, उसकी औकात इतनी रह गयी है कि सिर्फ़ 2 दिन में विदेशी निवेशकों ने बाजार से 8000 करोड़ से ज़्यादा निकाले हैं।

कांग्रेस की बनाई संपत्तियां बेचकर सरकार चलाने वाले नरेंद्र मोदी को सोचना चाहिए कि उनकी सरकार को विनिवेश के लक्ष्य का दो-तिहाई ही क्यों मिल रहा है? इस साल लक्ष्य छोटा क्यों हो गया?

बाजार से क़र्ज़ लेकर पूंजीगत व्यय का जुमला फेंकने वाली मोदी सरकार आज उसी पाकिस्तान के रास्ते चल रही है, जिसकी बिरयानी मोदी ने खाई।

कोविड काल में कांग्रेस और निजी मददगारों की सहायता को पाप बताने वाले नरेंद्र मोदी क्या बताएंगे कि उसी दौरान निजी क्षेत्र ने एक धेले का भी निवेश क्यों नहीं किया?

आज उसी निवेश की कमी को पूरा करने के लिए सरकार को बाजार से क़र्ज़ लेना पड़ रहा है।

शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, महंगाई से जुड़े सवाल इतने हैं कि जवाब देते सरकार को महीनों लग जाएं। पर जवाब हो तब न?

दुर्भाग्य से इस सरकार के पास न जवाब है, न जवाबदेही।

यही अमृतकाल है।
Soumitra Roy ✍️

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