संसार में समय-समय पर महापुरुषों और समाज सुधारकों का आविर्भाव होता रहता है, जो भूले भटके लोगों को सन्मार्ग दिखाते हैं, उनके जीवन को खुशहाल बनाने का कार्य करते हैं।
वैसे तो महापुरुष उन्हें ही कहा और माना जाना चाहिए जो मानवतावादी विचारों वाले होते हैं और प्राणी मात्र पर दया भाव रखते हैं। लेकिन लोगों ने ऐसे व्यक्तियों को भी महापुरुषों की संज्ञा दे डाली, जिन्होंने मानवता की बातों के बजाय ईश्वरों, उनके अवतारों, देवी- देवताओं और स्वर्ग- नरक जैसे परलोको की बातें अधिक की।
मानवता की बातें की भी तो वह सभी उनके लिए गौण रही। इसलिए ऐसे कथित महापुरुषों द्वारा मनुष्य का उद्धार तो नहीं हो सका, उल्टे वे दिग्भ्रमित होकर मिथ्या मान्यताओं और निरर्थक कल्पना में उलझ गए।
वास्तव में सच्चे महापुरुष था वे होते हैं जो लोगों को ईश्वरों, उनके अवतारों, देवी- देवताओं और स्वर्ग- नर्क जैसे परलोकों की मिथ्या मान्यताओं और निरर्थक कल्पना जाल से बाहर निकाल कर उन्हें इसी धरती पर सुखपूर्वक जीने का मार्ग दिखाते हैं, उनका संपूर्ण जीवन खुशहाल बनाते हैं।
ऐसे मानवतावादी और प्राणी मात्र पर दया भाव दिखाने वाले महापुरुषों में प्रथम नाम आता है तथागत भगवान बुद्ध का जिन्होंने आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व मानव मात्र का उद्धार करने के लिए अपने राज महलों का परित्याग कर दिया और भिक्षु बनकर अपनी अंतिम सांस तक लोगों को संन्यामार्गी बनाने का महत्तम कार्य किया।
भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात किसी मानवतावादी महापुरुष का नाम आता है तो वह नाम है ‘संत सम्राट सदगुरु कबीर साहेब’ जिन्होंने बीच बाजार में खड़े होकर डंके की चोट पर मानवता विरोधी तत्वों को इतनी तल्ख भाषा में फटकारा की जिसका कोई सानी नहीं।
सदगुरु कबीर साहेब की तरह जिस महापुरुष ने मानवता का संदेश दिया, वे है संत शिरोमणि रविदास जी महाराज। इन दोनों ही महापुरुषों के बाद कई शताब्दियों तक मानवतावादी महापुरुष का आविर्भाव नहीं हो सका। लेकिन कहते हैं कि अंधकार जब घना हो जाता है, तो सूरज निकलने का समय निकट आने लगता है। इसी प्रकार जब अमानवीय तत्वों का अधिक ही बोलबाला हो गया तो फिर एक और ऐसे महापुरुष का आविर्भाव हुआ, जिसे हम अत्यंत ही आदर एवं श्रद्धा भाव से ‘विश्व रत्न’ बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के नाम से पुकारते हैं।
मानवतावादी इस महापुरुष ने देश के करोड़ों दलितों ,शोषितों वंचितो के लिए जो कार्य किया वह युगो- युगो तक याद किया जाता रहेगा। इसलिए याद किया जाता रहेगा, क्योंकि आज दिन तक कोई भी महापुरुष इनकी तरह लिखित में ऐसा कोई दस्तावेज (संविधान) नहीं बना सका, हां, बाबा साहब ने संविधान रचकर उन लोगों को, जिन्हें शूद्र, नीच, अधम, अधमाधम कहां जाता, उन्हें समानता का अधिकार दिलाया और अन्यायियों तथा अत्याचारियों के अन्यायों और अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। उन्हें वे सब हक अधिकार दिलवाए जो इस देश के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति के पास होते हैं, समाज में अपने आप को उच्च मानने वाले ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जाति के कहलाने वाले लोगों के पास होते हैं।
मानवतावादी इस महापुरुष का बहुत बड़ा सपना था। और वह सपना यह था शुद्र माने गए लोग देश की सत्ता पर काबिज हो जाए। इसके लिए उन्होंने इन लोगों को ‘शिक्षित बनो’, ‘संगठित बनो’ और ‘संघर्ष करो’ के तीन महान सूत्र दिए थे और अपने वर्ग के शिक्षित व्यक्तियों से यह अपेक्षा की थी कि वे सब मिलकर देश के समस्त अशिक्षित मूलनिवासी बंधुओं को शिक्षित करेंगे, उन्हें संगठित करेंगे और इसके बाद देश में एक ऐसा संघर्ष चलाएंगे, जिससे वे सत्ता पर काबिज हो जाए।
लेकिन बड़े ही अफसोस की बात है कि अधिकांश शिक्षित लोगों ने बाबासाहेब के इस सपने को गंभीरता से नहीं लिया, जिससे उनका यह सपना आज भी अधूरा बना हुआ है। बाबासाहेब के आरक्षण बल से पढ़-लिखकर ये लोग शासन-प्रशासन में उच्च पदों पर बैठकर इस कदर इतरा गए कि अपने वर्ग के लोगों को सुधारने की बात तो दूर रही, उन्हें इनसे मिलने जुलने तक में शर्म महसूस होने लगी। इन शिक्षित लोगों की ऐसी हीन हरकत का पता बाबासाहेब को अपने जीवन काल में ही लग गया था, तब बड़े ही दु:ख के साथ उन्हें इनके बारे में यह कहने के लिए विवश होना पड़ गया था कि, ‘मुझे पढ़े-लिखे लोगों ने बहुत धोखा दिया है।