बहस जारी है

दैनिक समाचार

द्वारा : चंचल हूं

खबर कहीं से भी चले, गाँव में बिजली की तरह आती है, बयार की तरह घर घर डोलती टहलती है, और जाती ऐसे है जैसे पहाड़ी नदी का पानी.

दुनिया की मुख़्तलिफ़ बसावटों में भारतीय गाँव का मन, अभी भी जिज्ञासु बना हुआ है. अनगिनत सवाल इसके खीसे में रहता है. तेवारी चाय की दुकान, गाँव की संसद है, अल सुबह जब बग़ैर मुर्ग़ा के बाँग से सूरज निकलता है तो सबसे पहले तेवारी की भट्ठी का धुंवां दौड़ कर, रोशनी को अंकवार देता है. सुराजी चिखुरी का खाँसना बाँसवारी फलांग के लम्मरदार के कान तक आता है, यानी भोर हो गयी है.

“दुलहिन ! लोटा निकाल द” की आवाज़ देकर लम्मरदार उठ खड़े होते हैं. पहला काम खटिया पर आड़े तिरछे लेटे लड़कों को, नाम लेकर गाली निकालते हैं. यह गाली भगत कुंज बिहारी के भजन के साथ जुगलबंदी करने लगता है – “उठ जाग मुसाफ़िर…”

औरतों का झुंड “बाहर” से लौट रहा होता है. औरतों का सूरज निकलने के पहले और शाम सूरज डूबने के बाद “बाहर जाना” बहुमत पर आयी सरकार को चुनौती है!
“खुले में शौच” के प्रतिबंध का पोस्टर फड़फड़ाता है, सरकारी योजना दीवार पर लगे नोना की तरह झरता है.

नौकरशाही और चुने हुए प्रतिनिधि दिन के उजाले में ही बँटवारा करते हैं – आवास तीस फ़ीसद अग्रिम, दस फ़ीसद बीडीयो, दस में बाक़ी सब बाक़ी बचा आधा, आधे में प्रधान, सेक्रेटरी ? और पात्र को कितना मिला? पात्र सबसे ज़्यादा सजग है. उसे आवास के नाम पर रक़म मिली है-
“दसय पैसा सही कौन मेहनत की कमाई आय ? जवन बचत है सेकंड हैंड मोटरसाइकिल ले लेंगे ?”

आवास योजना मोटर साइकिल पर घूमने लगती है. “खुले शौच के ख़िलाफ़“ “स्वछ शौचालय” मुह बिरा रहा है. रतिनारायण सिंह नए सफ़ारी सूट में घूम रहे हैं.

नवल उपधिया साइकल रोक के सफ़ारी छू के देखते हैं –

  • बहुत महँगा निकाले बाबू साहेब ! बाबू साहेब महँगा है !

बाबू साहेब के रुआब में इज़ाफ़ा हुआ, लोग जानते हैं जब जब बाबू साहेब के रुआब में इज़ाफ़ा होता है, बाबू साहेब की तर्जनी अनायास उनके नाक में घुस जाती है, लेकिन उमर दर्ज़ी को देखिए जन्म का मुरहा है –

  • का महँगा है ?
  • बाबू साहेब के सफ़ारी !
  • लैट्रिन है !
    बाबू साहेब ग़ुस्सा गये, कैसा लैट्रिन जी ?
  • लैट्रिन का पैसा मिला है न !
    गाँव में अंग्रेज़ी पहुँच गयी है. शौचालय का शाब्दिक तर्जुमा नही किया गया है, बल्कि सीधे सीधे क्रिया बोधक अनुवाद कर दिया- “लैट्रिन”!

-दिल्ली कह कह रहा है-“करोड़ों शोचालय बनाए ! बनाए कि नही नही बनाए !”

-सब झूठ ! एक्को नही बना जो बना उसमें कुकर बैठते हैं. आओ देखो.

संसद बैठ गयी है. कोरम पूरा है. बचई उपधिया कल शाम वाली खबर अभी सुना रहे हैं –
“ऋतंभरा साध्वी ने हिंदू भाइयों से अपील की है कि वे चार बच्चे पैदा करें, दो राष्ट्र को दे दें, दो समाज को. तब हिंदू राष्ट्र बनेगा!”

कयूम मियाँ ने संसोधन पेश किया – ऋतंभरा के बाद साध्वी नही लगेगा? इसे पहले लगाओ, साध्वी ऋतंभरा ! जान रहें, कहें, मगर,
संसोधन गिर गया. तर्क सामने आ गया की ऋतंभरा पहले आयी, साध्वी बाद में हुई, इसलिए उनका नाम ऋतंभरा साध्वी ही रहेगा.

नवल ने तकनीकी सवाल पूछ है- “यह अपील भाइयों से किया है, ये कैसे बच्चा देंगे ?”

बहस जारी है।

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