अहिंसा गौरव और गरिमा पर आधारित रहा है बौद्ध धर्म। कई दबे कुचले लोगों की, दुनिया में आखिरी उम्मीद थी। लेकिन नेताओं के लालच ने उसे भी मुनाफे का तामाशा बना दिया। पिछले बीस साल से “मेरा धर्म बड़ा है” बोलकर नफ़रत बो रहे थे श्रीलंका में। धर्म का नशा उतर गया, लेकिन देश बर्बाद होने के बाद। श्रीलंका के एक सांसद ने खुद गोली मार ली, देश की जनता पीछे लग गयी थी।
अंधभक्ति में चूर श्रीलंका की जो अवाम कहती थी कि “राजपक्षे नहीं तो और कौन?” वही आवाम आज राजपक्षे का महल फूँक रही है, उनके मंत्रियों को कार समेत झील में फेंक रही है, उनके अंधसमर्थकों को दौड़ा-दौड़ाकर सड़कों पर पीट रही है, उनके सांसद बन्द कमरों में आत्महत्या कर रहे हैं।
श्रीलंकाई जनता का नशा तब उतरा है, जब उनके पास खोने को कुछ नहीं बचा ! आज उनके सामने मस्जिद-मदरसे, अज़ान-बुर्का से ज्यादा अहम मुद्दे पेट की भूख है। अब उनकी प्रायोरिटी किसी मदरसों पर ताला लगाने की जगह अपने भूखे बच्चों के लिए रोटी जुटाना है, किसी मस्जिद को खोदकर उसके नीचे मूर्तियाँ तलाशने से पहले वो अपने लिए रोजगार तलाशना बेहतर समझेगा।
जिन नेताओं ने अंधभक्तों का झुंड पैदा करके देश में नफरत की आग फैलाई और राज किया, वो नेता अब मुल्क छोड़कर भाग गए या भाग रहे हैं! जनता से पिटने के लिए अब वही समर्थक और अंधभक्त बचे हैं, जिन्हें धर्म बचाने का कीड़ा था। अब अगर वो जनता से बच भी गए तो बेरोजगारी और भुखमरी मार देगी।
श्रीलंका और म्यांमार की तबाही पूरी दुनिया के लिए चेतावनी है, जो भी राष्ट्र इनसे सबक लेना चाहें, उनके लिए वक़्त अभी भी हाथ से फिसला नहीं है। जानिए क्यों आज 50 से ऊपर लंका पतियों (मिनिस्टरों) की लंका में आग लगा रही है, मजबूर एकजुट जनता? ऐसा क्या हुआ, क्या हुआ कि धर्म और नफरत के नाम पर आपस में लड़ने वाली जनता आज अपने भविष्य के लिए एकजुट है और सारे घोटालेबाज मंत्री फरार हैं ? कृपया श्रीलंका की कुछ गलतियों की जाँच करें और सबक लें।
-राकेश मनचन्दा